आम आदमी से क्यों अलग हैं किन्नर

ParveenKomal

Parveen Komal Chairman

लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ किये जाने वाले सामाजिक भेदभाव को लैंगिक असमानता या लैंगिक भिन्नता कहा जाता है। सृष्टि की वृद्धि में स्त्री और पुरुष की एक समान भूमिका होती है। Screenshot_20200830_122048स्त्री−पुरुष के संयोग से उत्पन्न होने वाली सन्तान जब प्राकृतिक रूप से लिंग विकृति का शिकार होकर जन्म लेती है, तब उसके प्रति समाज का भेदभाव पूर्ण रवैया समझ से परे होना स्वाभाविक है। मनुस्मृति के अनुसार पुरुष अंश की तीव्रता से नर तथा स्त्री अंश की तीव्रता से स्त्री सन्तान का जन्म होता है। परन्तु जब दोनों का अंश एक समान होता है तब तृतीय लिंग का शिशु जन्म लेता है या फिर नर−मादा जुड़वां सन्तानें पैदा होती हैं। समाज ने तृतीय लिंग वाली सन्तान का नामकरण क्लीव, हिजड़ा, किन्नर, शिव−शक्ति, अरावानिस, कोठी, जोगप्पा, मंगलामुखी, सखी, जोगता, अरिधि तथा नपुंसक आदि अनेक नामों से किया है। क्लीव और किन्नर संस्कृत भाषा के शब्द हैं, जबकि हिजड़ा उर्दू शब्द है। जो कि अरवी भाषा के हिज्र से बना है। जिसका अर्थ होता है कबीले से पृथक।

भारत के प्राचीन इतिहास में किन्नरों का समाज में एक सम्मानीय स्थान रहा है और इन्हें गायन विद्या का मर्मज्ञ माना जाता था। तुलसीदास जी ने “सुर किन्नर नर नाग मुनीसा” के माध्यम से किन्नरों के उच्च स्तरीय अस्तित्व को रेखांकित भी किया है। हालांकि सामाज का एक बड़ा वर्ग किन्नर और हिजड़ों को पृथक−पृथक मानता है। किन्तु जब किन्नर शब्द के अर्थ पर विचार किया जाता है तो किन्नर शब्द का अर्थ है विकृत पुरुष और यह विकृति लैंगिक भी हो सकती है। जबकि कुछ विद्वान इसका अर्थ अश्वमुखी पुरुष से करते हुए किन्नरों को पुरुष और ऐसी स्त्रियों को किन्नरी कहते हैं। वर्तमान समय में किन्नर का आशय हिजड़ों से ही लिया जाता है।
मुगल काल में भी किन्नरों को विशेष सम्मानित दृष्टि से देखा जाता रहा है। वह राज्य के सलाहकार, प्रशासक और हरम के रक्षक पद पर तैनात रहते थे। इनके पास अपनी जमीनें थीं और ये सम्मान के साथ समाज में रहकर अपना जीवन व्यतीत करते थे। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के आगमन के बाद इनकी दशा दुर्दशा को प्राप्त हो गई। शेष भारतीयों के साथ अंग्रेजी हुकूमत की अत्यचारपूर्ण नीतियाँ तो जग जाहिर हैं ही। किन्तु किन्नरों के साथ अंग्रेजों ने कुछ अधिक ही जुल्म ढाए। चूंकि इनका जैविक अधिकार इनके रक्त से सम्बन्धित नहीं था। अतः ब्रिटिश हुकूमत के सम्पत्ति अधिकार कानून के तहत इनकी जमीनें इनसे छीनकर इन्हें बदतर जीवन जीने के लिए छोड़ दिया गया। परिणामस्वरूप कुछ किन्नर जहाँ अपराध में लिप्त हो गए तो शेष भीख मांगकर जीवनयापन करने लगे। धीरे−धीरे देश के आमजन ने भी इन्हें हिकारत की दृष्टि से देखना प्रारम्भ कर दिया और यह समुदाय समाज की मुख्य धारा से पूरी तरह पृथक हो गया। यहाँ यह भी समझना वैचित्र्यपूर्ण है कि दुनिया के अन्य जितने भी समुदाय हैं उनमें कहीं न कहीं रक्तिम सम्बन्ध होता है। परन्तु किन्नर समुदाय के किसी भी सदस्य का आपस में किसी भी प्रकार का कोई रक्तिम सम्बन्ध नहीं होता है। उसके बाद भी ये लोग भावनात्मक रूप से एक दूसरे के साथ जुड़कर एक पृथक समाज की स्थापना करके अपना जीवन व्यतीत करते हैं। बच्चे के जन्म से लेकर विवाह समारोह तक में लोगों की मंगलकामना करके बख्शीश प्राप्त करना ही इनका जीवनयापन का साधन है।

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